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Wednesday, September 24, 2014

                              मुझे इंतजार है
अक्सर  देखकर अन्याय को 
           कौंध जाती है एक बिजली सी मन में 
उबलने लगता है खून , फिर भी 
          खामोश रहता हूँ , मुझे इंतजार है उस हवा का 
जो उड़ा  देगी राख को , धधकाएगी अंगार को 
          उठेंगी फिर लपटें , गिरा देंगी अन्याय के अंधकार को

 दिनांक १०/१२/१९९५ 

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