मुझे इंतजार है
अक्सर देखकर अन्याय को
कौंध जाती है एक बिजली सी मन में
उबलने लगता है खून , फिर भी
खामोश रहता हूँ , मुझे इंतजार है उस हवा का
जो उड़ा देगी राख को , धधकाएगी अंगार को
उठेंगी फिर लपटें , गिरा देंगी अन्याय के अंधकार को
दिनांक १०/१२/१९९५
अक्सर देखकर अन्याय को
कौंध जाती है एक बिजली सी मन में
उबलने लगता है खून , फिर भी
खामोश रहता हूँ , मुझे इंतजार है उस हवा का
जो उड़ा देगी राख को , धधकाएगी अंगार को
उठेंगी फिर लपटें , गिरा देंगी अन्याय के अंधकार को
दिनांक १०/१२/१९९५
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